Tuesday, 9 August 2011

जैन सिद्ध क्षेत्र बावनगजा

धर्मयात्रा में हम इस बार आपको लेकर चल रहे हैं विश्व प्रसिद्ध जैन सिद्ध क्षेत्र बावनगजा (चूलगिरि) में। यहाँ हाल ही में चतुर्थ महामस्तकाभिषेक संपन्न हुआ है। मध्यप्रदेश के बड़वानी शहर से 8 किमी दूर स्थित इस पवित्र स्थल में जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेवजी (आदिनाथ) की 84 फुट ऊँची उत्तुंग प्रतिमा है। सतपुड़ा की मनोरम पहाडि़यों में स्थित यह प्रतिमा भूरे रंग की है और एक ही पत्थर को तराशकर बनाई गई है। सैकड़ों वर्षों से यह दिव्य प्रतिमा अहिंसा और आपसी सद्भाव का संदेश देती आ रही है।
इतिहास : सतपुड़ा की तलहटी में स्थित भारत की सबसे बड़ी प्रतिमा का निर्माण कब हुआ था, इस बात का कहीं भी उल्लेख नहीं है, परंतु इस बात के प्रमाण हैं कि प्रतिमा 13वीं शताब्दी के पहले की है। एक शिलालेख के अनुसार संवत 1516 में भट्टारक रतनकीर्ति ने बावनगजा मंदिर का जीर्णोद्धार कराया और बड़े मंदिर के पास 10 जिनालय बनवाए थे।

मुस्लिम राजाओं के शासनकाल में यह प्रतिमा उपेक्षा का शिकार रही तथा गर्मी, बरसात और तेज हवाओं के थपेड़ों से काफी जर्जर हो गई। जब दिगंबर जैन समुदाय का ध्यान इस ओर गया तो उन्होंने भारतीय पुरातत्व विभाग के अधिकारियों और इंजीनियरों के साथ मिलकर प्रतिमा के जीर्णोद्धार की योजना बनाई। विक्रम संवत 1979 में प्रतिमा का जीर्णोद्धार हुआ और तब इसकी लागत करीब 59000 रुपए आई। इसके फलस्वरूप प्रतिमा के दोनों ओर गैलरी बना दी गई और इसे धूप और बरसात से बचाने के लिए इस पर 40 फुट लंबे और 1.5 फुट चौड़े गर्डर डालकर ऊपर ताँबे की परतें डालकर छत बना दी गई।
प्रतिमा का आकार : कुल ऊँचाई 84 फुट
दोनों हाथों के बीच का विस्तार 26 फुट
 हाथ की लंबाई 46 फुट 6 इंच
कमर से एड़ी की लंबाई 47 फुट
मस्तिष्क की परिधि 26 फुट
पैर की लंबाई 13 फुट 9 इंच
नाक की लंबाई 3 फुट 3 इंच
आँख की लंबाई 3 फुट 3 इंच
कान की लंबाई 9 फुट 8 इंच
दोनों कानों के बीच की दूरी 17 फुट 6 इंच
पैरों की चौड़ाई 5 फुट 3 इंच

24 तीर्थंकर









































































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